मैं क्या बनूँ जड़ या फिर फल... |
मिट्टी के अन्दर होती हैं ...
जहाँ पानी और पोषण तो रहता है ...
पर हवा ढंग से पहुँच नहीं पाती है ...
लेकिन ...
उनका जीवन तो जड़ ही होता है ...
फल ...
जो ऊँचाई पर उगते हैं ...
खुली हवा खाते हैं ...
तोड़ें जाते हैं ...
किसी की भूख मिटाते हैं ...
किसी बीमार का पथ्य बन जाते हैं ...
कई हाथों से गुजरते हैं ...
दुनिया देखते हैं ...
और दुनिया के काम आते हैं ...
लेकिन ...
उनका जीवन भी तो जड़ ही होता है ...
और हमेशा मुझे ...
एक सवाल खाए जाता है कि ...
मैं क्या बनूँ जड़ या फिर फल ...
काश मैं ये समझ पाती कि ...
मैं क्या करूँ ???
अंजु सिन्हा ...