Tuesday, December 28, 2010

मेरा आशियाना सजा नहीं


कभी मैं मिली नहीं.... जब...
कभी मैंने भी
शहर की रोशनी इकट्ठा की थी  ,
फिर भी ...
आशियाना सजा नहीं .....
तुफां को  सह लिया ,
पर हवाओं से..
 बची  नहीं......
शाम तो चमक रही है रंगों से मगर,
रात के मंजर का पता नहीं .....
लोगों का हुजूम उमरा है फिर भी,
अकेलेपन की  कोई दवा नहीं ......
बहुत  मशक्कत है इस खेल में,
जो उलझता है वो निकलता नहीं ....
जी तो लूंगी मैं  इस बेबसी में भी,
पर मेरी सासों की इसमें रजा नहीं ....
आंसूओं की नमक में जो बात है,
हंसी की मिश्री में वो मजा नहीं ....
खुली हवा में घूमते हैं हम सब,
पर घुटन से कोई भी निकला नहीं....
रहगुजर की तलाश में भटकते रहें,
पर सुकून की  कभी तलाश  नहीं,
मुमकिन  है दुनिया में लोगों से मिलना
पर खुद से कभी मैं मिली नहीं....
                                                                          अंजु  सिन्हा

2 comments:

  1. alelepan ki koi dawa nahi hai. wo ek mausam hai. iske saath yah ek bheenga hua ehsas hai. jaroorat is baat ki hai ki hum apne andar ki journey me khud ko duboo de... yahi ek rasta hai.

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  2. har koi akela hai ye v khash hai kyoki jo alela nahi woh khud ko janta hi nahi ... in tanhaiyon me basa ek mahal duniya ki tang aawazon se dur hai kahi.... tere dil ke kone me basa aasiyan bahari gandagi se bacha hai kahi... really nice i like it lot... keep writingggggggg

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